हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , शेख़ इब्राहीम ज़कज़ाकी ने इस मुलाक़ात में शिक्षा के आध्यात्मिक महत्व को उजागर करते हुए कहा कि शिक्षा तभी वास्तविक प्रभाव रखती है जब वह इख़्लास और रज़ा-ए-इलाही के लिए प्राप्त की जाए। उन्होंने कहा कि यदि ज्ञान ईश्वरीय नीयत के बिना हो, तो वह न तो व्यक्ति के सुधार का कारण बनता है और न ही समाज के निर्माण में प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
शेंख़ ज़कज़ाकी ने छात्रों और स्टूडेंट्स की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि युवा पीढ़ी पर ज़रूरी है कि वह ज्ञान के साथ-साथ अपनी धार्मिक और नैतिक पहचान की रक्षा करे और समाज में ज़िम्मेदाराना भूमिका अदा करे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ज्ञान, प्रतिबद्धता और ईश्वरीय मूल्यों का आपसी संबंध ही एक जागरूक और सम्मानित उम्मत के निर्माण की गारंटी है।
उन्होंने आगे कहा कि हौज़ा-ए-इल्मिया के छात्र और विश्वविद्यालयों के स्टूडेंट्स को चाहिए कि वे शैक्षणिक गतिविधियों के साथ-साथ सामाजिक, प्रशिक्षणात्मक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी सक्रिय रहें, ताकि इस्लामी शिक्षाओं को व्यावहारिक जीवन में लागू किया जा सके और उम्मत को चुनौतियों का प्रभावी जवाब दिया जा सके।
उल्लेखनीय है कि यह मुलाक़ात एक महान अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भागीदारी के बाद हुई, जो विश्वभर में इमाम ख़ुमैनी (रह.) के विचारों और उनके मार्ग के प्रचार-प्रसार में सेवाएं देने वालों के सम्मान के लिए आयोजित किया गया था। इस सम्मेलन को पहला वैश्विक इमाम ख़ुमैनी (रह.) अवॉर्ड” का शीर्षक दिया गया था।
मुलाक़ात के समापन भाग में शेंख़ इब्राहीम ज़कज़ाकी ने तवाशीह समूह “अबनाए रूहुल्लाह” द्वारा प्रस्तुत क्रांतिकारी और आध्यात्मिक कलाम की सराहना की और उनकी धार्मिक व सांस्कृतिक सेवाओं की प्रशंसा की।
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